BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।

अथवा
यम और नियम क्या हैं? योग दर्शन में विवेचना कीजिए।
अथवा
समाधि क्या है? विवेचना कीजिए।
अथवा
योग दर्शन में प्राणायाम की विवेचना कीजिए।
अथवा
प्राणायाम क्या है? विवेचना कीजिए।
अथवा
अष्टांग योग सिद्धांत की पूर्ण व्याख्या कीजिये।
अथवा
योग दर्शन के अनुसार अष्टांग योग के आठ चरणों के नाम बताइये।

उत्तर -

योगी के लिए इन पाँच नियमों का पालन करना अनिवार्य है। मन को शक्तिशाली बनाने के लिए शरीर को भी सबल बनाना आवश्यक है इसलिए योग का विशेष महत्त्व है। काम, क्रोध, मोह, अर्थ और धर्म आदि से चित्त में अशुद्धि आ जाती है। चित्त को शुद्ध बनाये रखने के लिए शरीर को नियंत्रित करना आवश्यक होता है, 'यम' इसके लिए आवश्यक है।

अहिंसा से तात्पर्य है कि किसी भी प्राणी के प्रति क्रूर व्यवहार न करना तथा सबके प्रति दया, करुणा व सद्भाव रखना। अहिंसा का अर्थ भी यही है अर्थात् हिंसा न करना। सत्य से तात्पर्य है सब प्राणियों के हित को ध्यान में रखते हुए जैसा सोचना वैसा बोलना। सत्य वही है जो सबके हित के लिए कहा जाए। योग का नैतिक पक्ष स्वार्थवादी (Egoistic) नहीं है। योग परहितवादी (Altruistic) है।

अस्तेय से तात्पर्य है दूसरे की सम्पत्ति पर अनुचित रूप से अधिकार न करना। अस्तेय के दो पक्ष हैं एक स्थूल या बाह्य तथा दूसरा सूक्ष्म या आन्तरिक।

ब्रह्मचर्य से तात्पर्य है उपस्थ संयम और उन इन्द्रियों का भी संयम जो कामेच्छा से सम्बन्धित हैं। रति क्रिया का स्मरण, उसकी चर्चा किसी स्त्री से काम-क्रीड़ा करना और एकान्त में भाषण करना, उसके अंगों को देखना, काम चिन्तन, रति का इरादा करना और मैथुन ये आठ प्रकार की काम तृप्तियाँ हैं। ब्रह्मचर्य के लिए इनसे दूर रहना आवश्यक है।

अपरिग्रह से तात्पर्य है उपयोग की वस्तुओं का संचय न करना। सम्पत्ति का संग्रह, रक्षण और व्यय करने में राग और हिंसा के दोष होते हैं।

योग दर्शन के अनुसार बन्धन का मूल कारण अविवेक है। जब पुरुष और प्रकृति के भेद का ज्ञान नहीं होता है तो आत्मा बन्धन में पड़ जाती है। इसी कारण मोक्ष के लिए तत्व ज्ञान पर बल दिया गया है। मनुष्य के चित्त में विकार रहने के कारण ही बुद्धि दूषित रहती है। इसीलिए उसे तत्व ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। मुक्ति के लिए प्रज्ञा आवश्यक है। प्रज्ञा का अर्थ है आत्म दृष्टि के द्वारा यह जानना कि आत्मा नित्य युक्त शुद्ध चैतन्य स्वरूप है तथा शरीर एवं मन से भिन्न है। इसकी प्राप्ति हेतु चित्त का शुद्ध और निर्मल होना आवश्यक है। योग दर्शन में चित्त की वृत्तियों को रोकने के लिए महत्व दिया गया है। वृत्तियों के रोकने से चित्त शुद्ध होता है और जब तक चित्त शुद्ध नहीं होता जीव को मुक्ति की उपलब्धि नहीं होती। इसलिए योग दर्शन में आठ साधनों का प्रतिपादन किया गया है। इन आठ साधनों को अष्टांग योग, अष्टांगिक मार्ग नामों से जाना जाता है। ये निम्न हैं - -

(1) यम,
(2) नियम,
(3) आसन
(4) प्राणायाम,
(5) प्रत्याहार
(6) धारणा,
(7) ध्यान, समाधि।

(1) यम - यह योग का प्रथम अंग है। वाह्य एवं आन्तरिक इन्द्रियों के संयम की क्रिया को यम कहते हैं। भय के पाँच अंग होते हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह। किसी जीव को किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाना अहिंसा है। मिथ्या वचन का परित्याग सत्य है। चौर्य वृत्ति का परित्याग अस्तेय है। विषय वासना से दूर रहना तथा इन्द्रियों को संयम में रखना ही ब्रह्मचर्य है। लोभवश किसी अनावश्यक वस्तुओं को ग्रहण नहीं करना ही अपरिग्रह कहलाता है।

(2) नियम - योग का दूसरा अंग नियम है। शोध, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान आदि ये पाँच नियम हैं। शोध के भी दो प्रकार हैं-

1. बाह्य शोध,
2. आन्तरिक शोध

बाह्य शोध से तात्पर्य शरीर को जल आदि से साफ करना है जबकि आन्तरिक शोध से तात्पर्य है चित्त के विकारों को निकाल देना, किसी चीज की इच्छा न करना, तप में भूख प्यास, सर्दी- गर्मी को सहना, लगातार बैठे रहना या खड़े रहना, मौन रहना तथा किसी प्रकार की इच्छा प्रकट न करना तथा शारीरिक कठिनाइयों को झेलना आदि। नियम का सम्बन्ध आचरण से है, नियम में सदाचार का पालन होता है।

(3) आसन - यह योग का तीसरा अंग है। नियम को हम दूसरा नैतिक साधन कहते हैं। यहाँ पर आसन साधन का काम शरीर के लिए करता है। आसन से तात्पर्य है कि शरीर को एक विशेष स्थिति में रखना जिससे सुख मिलने की सम्भावना हो। आसन कई प्रकार के होते हैं जैसे पद्मासन, वीरासान, भद्रासन, शीर्षासन, सिद्धासन, मयूरासन, गरुड़ासन, श्वासन आदि इन आसनों को करने से पूर्व गुरु को बनाना आवश्यक होता है, तभी ये आसन ठीक प्रकार से हो पाते हैं। चित्त को एकाग्र करने में भी आसानों का विशेष योगदान है। आसनों के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों पर नियन्त्रण स्थापित हो जाता है। शरीर के सभी अंग, स्नायुमंडल आदि आसन के माध्यम से पूर्ण रूप से नियंत्रित हो जाते हैं। आसन में शरीर हिलता नहीं है, न उसमें शरीर को कष्ट होता है, न मन चंचल होता है। आसन तांत्रिका तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। योग के लिए शरीर का नियन्त्रण आवश्यक है।

(4) प्राणायाम - पतंजलि ने प्राणायाम को ऐच्छिक साधन के रूप में माना। प्राणायाम का अर्थ है श्वास नियन्त्रण | यह एक श्वास प्रश्वास सम्बन्धी व्यायाम है। यह आसन दुर्बल शरीर के व्यक्तियों के लिए हितकारी नहीं होता, उन्हें इससे सम्मोहन का भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति योग विद्या का भी लाभ नहीं उठा सकते। प्राणायाम के तीन अंग होते हैं.

1. पूरक अर्थात् श्वास भीतर खींचना।

2. कुम्भक अर्थात् श्वास को भीतर रोकना।

3. रेचक अर्थात् नियमित तरीके से श्वांस छोड़ना।

शरीर के इस व्यायाम के लिए समर्थ साधक या गुरु की आवश्यकता होती है। प्राणायाम से मन स्वच्छ, पवित्र तथा शरीर सबल होता है। प्राणायाम चित्त की चंचलता को भी रोकता है। जब तक श्वास चलता है, क्रिया पर नियन्त्रण हो जाता है। साधक मनुष्य अभ्यास के द्वारा कुछ मिनटों या घण्टों नहीं, अपितु कई दिनों तक श्वास रोक लेता है। मन में विकार उत्पन्न करने वाले तत्व प्राणायाम से दब जाते हैं। प्राणायाम सबसे बड़ा तप है, इससे मन के मैलों का क्षय तो होता ही है, साथ ही ज्ञान का उदय भी होता है।

(5) प्रत्याहार - यह योग का पाँचवाँ अंग है। प्रत्याहार का अर्थ है इन्द्रियों को वश में करना। इसके लिए पहले बाह्य पदार्थों से इन्द्रियों को अलग करना पड़ता है अर्थात् दोनों का सम्पर्क तोड़ना अनिवार्य होता है। इसके अन्तर्गत बहुत जोर से बोली जाने वाली ध्वनि भी व्यक्ति के कानों को नहीं सुनाई देती। इस अवस्था को प्राप्त करना बहुत कठिन है, लेकिन यह असम्भव नहीं है। इस अवस्था को कठिन योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ये पाँच साधन बहिरंग ( external menas) कहलाते हैं तथा शेष तीन साधन धारण, ध्यान और समाधि को अंतरंग साधन (interal means) कहते हैं।

(6) धारणा - मन को विशेष स्थान अथवा पदार्थ पर स्थिर करने की क्रिया 'धारण' कहलाती है। इस अवस्था में चित्त स्थिर हो जाता है तथा उसमें परिवर्तन वृत्तियाँ बन्द हो जाती हैं। मन विचारों का भण्डार है, विचार कुछ क्षणों के लिए आते हैं फिर चले जाते हैं परन्तु धारण में ऐसा नहीं होता। इसमें मन किसी एक ही स्थान पर जाकर टिक जाता है तथा मन में कोई दूसरा विचार नहीं आता। वह वस्तु बाह्य पदार्थ भी हो सकता है व आन्तरिक शरीर भी। इसको अपनाने के लिए योग का विशेष महत्त्व है। धारण के अन्तर्गत चित्त नाभि, हृदय, नासिकाग्र, जिह्वाग्र, भृकुटि, मध्य काण्ड आदि पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। धारण से चित्त का नियन्त्रण होता है तथा चित्त अन्य वस्तुओं से हट जाता है अतः चित्त में ध्यान की क्षमता आ जाती है।

(7) ध्यान - यह समाधि से पूर्व की अवस्था है। ध्यान का अर्थ है ध्येय अथवा ध्यान के विषय पर लगातार मनन या चिन्तन करना। इसमें जिस विषय पर ध्यान दिया जाता है, उसके अलावा कोई विचार उत्पन्न नहीं होता। इसमें भ्रम नहीं होता व सत्यता प्रकट होती है। आत्मा को मुक्ति का आभास होने लगता है तथा वह अपने स्वरूप को जानने लगती है। यह तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति दीर्घकाल तक इसका अध्ययन करता है। ध्यान में ध्येय वस्तुओं के प्रत्ययों का निरन्तर प्रवाह चलता रहता है तथा उस प्रवाह के मध्य किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती।

(8) समाधि - धारण, ध्यान और समाधि तीनों योग के अंतरंग साधन हैं, तीनों का उद्देश्य एक ही रहता है। अन्य शब्दों में तीनों एक ही विषय या पदार्थ को लेकर मन में धारण होती हैं। तीनों का मेल संयम कहलाता है। यह योग का अन्तिम साधन है। समाधि योग साधना की अन्तिम सीढ़ी है। इस सीढ़ी के द्वारा साधक अपने लक्ष्य अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इस स्थिति में आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है तथा यही जीवन का लक्ष्य होता है यहाँ पर योग की सारी यात्रा समाप्त हो जाती है तथा इसके बाद किसी योग की आवश्यकता नहीं होती। समाधि में लीन व्यक्ति को यह भी ज्ञात नहीं होता कि वह किस पदार्थ के ध्यान में है। ज्ञाता और ज्ञेय (Knower and Known) दोनों का भ्रम समाप्त हो जाता है, केवल ध्येय वस्तु का ही प्रकाश रहता है। यह अवस्था दीर्घकाल तक रहती है, तब इसे सम्प्रज्ञात समाधि कहा जाता है। जब अर्थ में प्रकाश भी नहीं रहता, तब इसे असम्प्रज्ञात समाधि कहा जाता है।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book